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मंगलवार, जून 07, 2016

सुनाऊँगी मैं मेघ मल्हार तुझको; चर्चा मंच 2366

सिंगापुर यात्रा संस्मरण भाग 1. 

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सरिता भाटिया 

ग़ज़ल 

"अपनी मुरलिया बना तो" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

मुझे आज अपनी मुरलिया बना तो
तू एक बार होठों से मुझको लगा तो

संगीत को छेड़ दूँगी मैं दिलवर
तू इक बार मुझको उठाकर बजा तो  

सुनाऊँगी मैं मेघ मल्हार तुझको
सुराखों को तू कायदे से दबा तो

पूछ लेते तो मुझे हार्ट अटेक नहीं होता 

विष्णु बैरागी 

कहाँ गया चाँद ! 

Neeraj Tyagi 

कला, साहित्य और राजनीति 

Vivek 

किसी भी तर्ह जीने दे नहीं सकती है तुह्मत ये 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’  

ग्यारह वर्ष का समय - रामचंद्र शुक्ल 

Devendra Gehlod  

चार कवितायेँ 

देवेन्द्र पाण्डेय 

समाज के विकास में आबादी की भूमिका - १ 

समय अविराम 

गांव की थाली 

HARSHVARDHAN TRIPATHI 

रस्म तो रस्म ही है 

udaya veer singh 

मेरी नौ कविताएँ (मई 2016) 

Pankaj Kumar Sah 

यहाँ मौसम बदलते जा रहे हैं 

हिमकर श्याम 

पर्यावरण : बुंदेली छंद 

Dr Varsha Singh 

इन्हीं पेड़-पौधों पर 

कभी चहकती थीं नन्ही गौरैया 

haresh Kumar  

लोकतंत्र खरीद लो! 

pramod joshi  

विश्व पर्यावरण दिवस 

चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है 

सुशील कुमार जोशी 

गीत 

"पहली बारिश जून की" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

बहुत सताती थी कल तक जो,
भीषण गर्मी माह जून की।
आज इन्द्र लेकर आये हैं,
पहली बारिश मानसून की।

उच्चारण

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