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शनिवार, जून 18, 2016

"वाह री ज़िन्दगी" (चर्चा अंक-2377)

मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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शांति ....... 

कहीं पर रोना कहीं पर धोना 
कहीं पर जलती कंचन काया 
फिर भी लगता परचम है फहराया 
लिए हुए सब बाजू में तुरुप का पत्ता... 
Mera avyaktaपर 
मेरा अव्यक्त -- 
राम किशोर उपाध्याय 
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काले-काले बादल आये।
देख-देख सब हैं हर्षाये।।

काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
बिजली कड़की पानी आया... 
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प्रेम का मुकाम  
तू दूर कब है मुझसे 
मैं अब मैं कहा हूँ 
एक चुके हैं हम दोनों 
जब निहारूं खुद को 
तुझे साथ पाया है प्रियतम 
कुछ भी तो नहीं चाहिए 
इसके सिवा 
प्रेम ने पा लिया है 
अपना मुकाम |
साहित्य सुरभि
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लिखना चुनें 

मैं समझता हूँ कविता, कहानी, डायरी, आवेदन, चिट्ठी जो लिख सकते हों, जो भी पसंद हो सबको खूब लिखना चाहिए। रोज़ कुछ न कुछ लिखें। छपे न छपे। कोई पढ़े न पढ़े इसकी परवाह छोड़कर। एक मामूली इंसान जब टूटी-फूटी कविता लिखता है, रिश्तेदारों या मित्रों को पत्र लिखता है, यहाँ तक की जब कोई बच्चा एक पुर्जे में कुछ लिख कांपते हाथों से दोस्त लड़की को थमा देता है तो वह भाषा का साथी होता है। मैं चाहता हूँ लोगों को इतना मज़बूत और आत्मविश्वासी बनने में योग दिया जाये कि जब वे अपना कोई कार्ड भी छपवायें तो उसमें अपनी पसंद की दो लाईन लिख सकें... 
हमारी आवाज़ पर शशिभूषण 
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515.  

तय नही होता 

कोई तो फ़ासला है जो तय नही होता  
सदियों का सफ़र लम्हे में तय नही होता !  

अजनबी से रिश्तों की गवाही क्या  
महज़ कहने से रिश्ता तय नही होता... 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम 
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वाह री ज़िन्दगी  

गो के है तो मिहरबान सी ज़िन्दगी 
पर कहाँ अब वो अपनी रही ज़िन्दगी 
मैं था हैरान के हो रहा क्या यहाँ 
और मुझसे रही खेलती ज़िन्दगी... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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है विश्वास तुम्हे खुद पर 

ओ साथी मेरे 
क्यों बैठे हो तुम चुपचाप 
कब तक रहोगे गुमसुम 
तोड़ दो तुम अब बंधन सब... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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woman also 

स्त्रिया कब तक 
अपना अपमान खुद कराती रहेंगी 
अपने को समर्थ कहती हैं 
फिर पुरुषों से सहायता मांगती हैं... 
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तीन बरस त्रासदी के 

तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 
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शीर्षकहीन 

तो लीजिए हाज़िर है , एक और इंफोटेनमेंट : 
गर्मी में आता है गर्म पसीना , 
यही पसीना तो गर्मी से बचाता है। 
कंपकपाने का मतलब डर नहीं होता , 
सर्दियों में कंपकपाना ही ऊर्ज़ा दिलाता है। 
मत समझो कोई अपशकुन इसे , 
छींकने से तो स्वास मार्ग खुल जाता है... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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समंदरों की सियासत ... 

हमारे दिल की हरारत किसी को क्या मालूम 
ये: मर्ज़ है कि मुहब्बत किसी को क्या मालूम 
बड़े सुकूं से वो: शाने मिलाए बैठे थे 
कहां हुई है शरारत किसी को क्या मालूम... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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दोस्ती उससे करो जिसमें…
अहंकार ना हो, अपने ते गुरूर ना हो।
चाहे कितना भी उनका क़सूर हो... 

माता-पिता को कभी बुरा मत कहो। 
KMSRAJ51-Always Positive Thinker
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ऐ मनुज तू
काट मुझको
दंड दे मेरी खता है,
खोदकर अपनी
जडें ही
मृत्यु से क्यों तोलता है... 

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