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मंगलवार, जून 21, 2016

"योग भगाए रोग" (चर्चा अंक-2380)

मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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सुबह-शाम कर लीजिए, सच्चे मन से योग।तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग।१।--दुनियाभर में बन गया, योग-दिवस इतिहास।योगासन सब कीजिए, अवसर है यह खास।।मानुष जन्म मिला हमें, करने को शुभकाम।पापकर्म करके इसे, मत करना बदनाम।।थोड़े से ही योग से, काया रहे निरोग।।तन-मन को निर्मल करे, योग भगाए रोग... 
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     आज ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा है। आज के ही दिन दो महान विभूतियों का जन्म हमारे भारत वर्ष में हुआ था। जिनमें एक सन्त कबीर थे और दूसरे जनकवि बाबा नागार्जुन थे। सन्त कबीर एक समाज सुधारक थे और उनके नाम पर आज कई मठ बने हैं और उनमें मठाधीशों आधिपत्य है। जबकि बाबा नागार्जुन के नाम के जुड़ा न कोई मठ है और न कोई मन्दिर है। उनकी यही विशेषता उनको दूसरों से अलग करती है।

        मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से हूँ जिसे बाबा की सेवा और सान्निध्य मिला था... 

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दोहे "आये सन्त कबीर"  

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

सूफी-सन्त कबीर का, जनमदिवस है आज।
मना रहा अनुभाव से, जिसको विज्ञ समाज।।
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समझे सन्त कबीर ने, दुनिया के हालात।
साखी-दोहों में कही, सीधी-सच्ची बात।।
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जिसने दोहाछन्द में, बात कही अनमोल।
मुल्ला, पण्डित-पादरी, सबकी खोली पोल... 
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 नहीं, मैं नहीं एकान्त निर्मात्री, 
इस सद्य-प्रस्फुट जीवन की, रचना मेरी, 
आधान तुम्हारा सँजो कर 
गढ़ दिया मैंने नया रूप .  
प्रेय था! - पौरुष का माध... 
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अब्बा ,
आज इतने सालो के बाद 
आपके अब्बापन के बारे में सोचता हूँ तो 
दांतों तले ऊँगली दबा लेता हूँ /
वाकई अब्बा होना 
हंसी खेल नहीं है /
आपने सफल अब्बा होने के 
कितने बार सबूत दिये /
अब्बा की भूमिका में आपने 
कितनी भिन्नताये पेश की /
आपकी सशक्त भूमिका की बदौलत 
हमारी जिंदगी की फिल्म 
हिट हो गई... 

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यारों इस दुनियां में इंसान।
न जाने क्या-क्या कर गया?
कोई हँसते-हँसते जी गया।
कोई हँसते-हँसते शूली पर चढ गया॥
बेपनाह मोहब्बतों का दौर भी…
देखा है इसी जहाँ में यारों।
कोई मोहब्बत में जी गया।
तो कोई मोहब्बत में मर गया...  
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रेगिस्तान की सांद्र उमस में
भटके पथिक सा मन
कभी यहाँ कभी वहां
लक्ष्य के पीछे भागता
हर क्षण प्रतिक्षण
सामने, बस एक कदम दूर
तत्क्षण ही अदृश्य
समय की गति सा
आगम और निगम ….. 
--
 
(मेरे पिता जी आदरणीय श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव ।जो आज 87 वर्ष 
की उम्र में भी लेखन में पूरी तरह सक्रिय हैं। 
ईश्वर आपको दीर्घायु करें।)

पिता

विशाल बाहुओं का छत्र
वट वृक्ष
हम पौधे
फ़लते फ़ूलते
वट वृक्ष की
छाया में... 
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पिता 

गीत विधा में
उनके कदमों पर चलकर अबउनकी ही भाषा बोल रहेजिनकी बातें तब ना समझेआदर्श वही अनमोल रहे
हाथ पकड़ हटिया में जातेचनाचूर जी भर के खातेरंग बिरंगी हवा मिठाईहँसकर पापा हमें दिलाते... 

धुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
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त्यागो नशा.  

मद को पीना न सीखो - 

कभी गम के हाथों बिकना  सीखो

किसी की बुलंदी से जलना  सीखो -
दिन गर्दिशी के मोहब्बत के दिन हों
कभी गुरबती से डरना  सीखो... 
udaya veer singh 
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लापता परखचे 

एक विस्फोट ...  
और शरीर के परखचे इधर से उधर 
बिखरे हुए सारे टुकड़े मिलते भी नहीं !! 
लापता व्यक्ति न जीवित  
और ...  मृत तो बिल्कुल नहीं !! 
खुली आँखों के आगे एक टुकड़े की तलाश 
और इंतज़ार आँखों की पोरों में 
सूख जाती है लुप्त गंगा सी... 
मेरी भावनायें...पर रश्मि प्रभा...  
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पक्षी 

koyal aur aam kaa ped के लिए चित्र परिणाम
आवाज सुन कर कोयल की
बागों में चले आये थे 
गौर से जब ऊपर देखा
बौर आम पर आए थे 
हिलती टहनियां देखीं
कोयल की कुहू कुहू सुनी 
मौसम बदलने लगा है... 
Akanksha पर Asha Saxena 

भारत और महाभारत 

*दुर्योधन और राहुल गांधी* -

दोनों ही अयोग्य होने पर भी सिर्फ राजपरिवार में 
पैदा होने के कारन शासन पर अपना अधिकार समझते हैं।

*भीष्म और आडवाणी* -

 कभी भी सत्तारूढ़ नही हो सके फिर भी सबसे ज्यादा सम्मान मिला। 
उसके बाद भी जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबसे ज्यादा असहाय दिखते हैं।

*अर्जुन और नरेंद्र मोदी*- 

 दोनों योग्यता से धर्मं के मार्ग पर चलते हुए शीर्ष पर पहुचे 
जहाँ उनको एहसास हुआ की धर्म का पालन कर पाना कितना कठिन होता है... 
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