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शुक्रवार, जून 24, 2016

"विहँसती है नवधरा" (चर्चा अंक-2383)

मित्रों
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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खिल रही खिल-खिल हँसी 

खिल रही खिल-खिल हँसी जीवन हुआ फूलों भरा, 
शाम कोई ढल रही है विहँसती है नवधरा... 
मानसी पर Manoshi Chatterjee  
मानोशी चटर्जी 
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ग़ज़ल  

"कल़मकार लिए बैठा हूँ" 

गम का अम्बार लिए बैठा हूँ
लुटा दरबार लिए बैठा हूँ

नाव अब पार कैसे लगेगी
टूटी पतवार लिए बैठा हूँ

जा चुकी है कभी की सरदारी
फिर भी दस्तार लिए बैठा हूँ...
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आर या पार ... 

बस एक दिन बचा है. EU के साथ या EU के बाहर. मैं अब तक कंफ्यूज हूँ. दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और. दिल कहता है, बंटवारे से किसका भला हुआ है आजतक. मनुष्य एक सामाजिक- पारिवारिक प्राणी है. एक हद तक सीमाएं ठीक हैं. परन्तु एकदम अलग- थलग हो जाना पता नहीं कहाँ तक अच्छा होगा. इस छोटे से देश में ऐसी बहुत सी जरूरतें हैं जिसे बाहर वाले पूरा करते हैं, यह आसान होता है क्योंकि सीमाओं में कानूनी बंदिशें नहीं हैं. मिल -बाँट कर काम करना और आना- जाना सुविधाजनक है. परन्तु सुविधाओं के साथ परेशानियां भी आती हैं. बढ़ते हुए अपराध, सड़कों पर घूमते ओफेंन्डर्स, बिगड़ती अर्थव्यवस्था... 
shikha varshney 
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आप सब जानते हैं सरकार! 

(१) 
स्कूल में घोड़े भी थे 
लेकिन टाप किया एक गधे ने। 
अरे! यह कैसे हुआ? 
आप सब जानते हैं सरकार! ... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 

भविष्यवाणी सत्य हुई 

साहित्यकार श्री अमृतलाल नागर के चर्चित उपन्यास ‘खंजन नयन’ के एक दृश्य में भक्त कवि सूरदास द्वारा ऐसी वाणी सृजित होने का ( घटना ) जिक्र है । जब सन 1490 में दिल्ली पर सिकंदर लोदी का शासन था ।
भविष्यवाणी देखने के लिये क्लिक करें - सूरदास की विश्वयुद्ध भविष्यवाणी
उपन्यास का अंश -
चीत्कार के स्वर मथुरा की गलियों में गूँज रहे थे । रह रहकर उठती आहें पाषाण को भी पिघला देने के लिए पर्याप्त थीं । पर आतताइयों के हृदय शायद पाषाण से भी कठोर थे... 
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rajeev kumar Kulshrestha 
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मनुष्यता की कोख से 

संवेदना संज्ञान ले -
नीर्जला की भूमि से 
नदसरित प्रयाण ले -
तृण मूल भी हुंकार भर
लौह का स्वरुप ले ... 
udaya veer singh 
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ज़िन्दगी मांगती है भीख
हर रोज़
खुशियों अरमानो सम्बन्धों
पैसो की भी
पर सच में पैसो की किसी को जरूरत है क्या
…..शायद नहीं... 

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मैं और मेरी बातें 

बड़ी से बड़ी समस्याओं का तोड़ है – बातें, जो समाधान कोई ना दे सके वो समाधान है – बातें, दुनिया के सारे सुख जो ना दे सकें वह आनन्द के क्षणों को भोगने का अवसर हैं – बातें। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें... 
smt. Ajit Gupta 
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वो गुजरा जमाना जो हम तुम मिले थे 
है बीता फ़साना जो हम तुम मिले थे|

बदलना अँगूठी को इक दूसरे से 
वो दिन था सुहाना जो हम तुम मिले थे... 
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शब्द मीठे होते हैं

कानों से होते हुवे
दिल में उतरते है
शहद घोल घोल के... 
उलूक टाइम्स
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एक युवक प्रतिदिन संत का प्रवचन सुनता था। एक दिन जब प्रवचन समाप्त हो गया तो वह संत के समीप गया और बोला, "महाराज! मैं काफी दिनों से आपके प्रवचन सुन रहा हूं, किंतु यहां से जाने के बाद मैं अपने गृहस्थ जीवन में वैसा सदाचरण नहीं कर पाता, जैसा यहाँ से सुनकर जाता हूं। इससे सत्संग के महत्व और प्रभाव पर संदेह भी होने लगता है। बताइए, मैं क्या करूं?"
संत ने युवक को बांस की एक टोकरी देते हुए उसमें पानी भरकर लाने के लिए कहा, युवक टोकरी में जल भरने में असफल रहा... 
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नवीन सी चतुर्वेदी की 

ब्रज-ग़ज़लें 

subodh srivastava 
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ये मोहब्बत 

अरे छोडो ये बनावटी मोहब्बत 
ये दिखावे के रिश्ते 
इन झूठे दिखावे से 
मोहब्बत नहीं की जाती 
बहुत सारा समय 
उम्र बीत जाती है 
मोहब्बत को सजाने में... 
Shikha 'Pari' 
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मदारी का गीत 

डम डमा डमडमडम 

ajay brahmatmaj 
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चमचमाती दिल्ली का सच  

गांवों की लगातार उपेक्षा के कारण रोजगार के जो भी अवसर थे खत्म होते जा रहे हैं। खेती की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। किसानों की जमीन विभिन्न योजनाओं की तहत छीना जा रहा है। शासक वर्गों
द्वारा यह सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है जिससे शहरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पी चिदम्बरम जैसे लोग चाहते हैं कि भारत क जनसंख्या का 80 प्रतिशत हिस्सा शहरों में आ... 
शरारती बचपन पर sunil kuma 
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क्षणिकाएँ - 

जिंदगी 

जद्दोजहद कभी खुद से 
कभी तुझसे जारी है ऐ जिंदगी ! 
एक दाँव और लगा लूँ तो चलूँ ... 
sunita agarwal 

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