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रविवार, अक्तूबर 01, 2017

"जन-जन के राम" (चर्चा अंक 2744)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

कौरवों की पूजा 

देहात पर राजीव कुमार झा  
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बेआवाज़ की बातें करो 

पहले ही अंज़ाम? उफ़्!!! आग़ाज़ की बातें करो! 
कर रहे हो आज तो फिर आज की बातें करो!! 
रोज़ तो करते ही हो आवाज़ की बातें तुम 
आज, टूटते इस दिल की बेआवाज़ की बातें करो!! 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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मनबावरा ..... 

नुष्य को इस संसार में लाना तो कठिन है ही ,पर उसको भला आदमी बना पाना उससे कही बहुत ज्यादा कठिन है ... ... निवेदिता मानव मन अपने मन की बातें छुपाना चाहता है शायद इसके पीछे का मूल कारण ये ही होगा कि शेष व्यक्ति उस बात को अपने मनमाफिक रंग देकर व्याख्या करेंगे 
और खामोश होता जाता है .... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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अगस्त के इस आखिरी हफ्ते के संकेत 

बढ़ती हुई रेल दुर्घटनाएं भी इस सरकार की एक और खास उपलब्घि रही हैवह भी इसी महीने में रेल दुर्धटनाओं की श्रृंखला से सबसे प्रगट रूप में जाहिर हुआ है । रेल बजट को केंद्रीय बजट में मिला कर मोदी ने रेलवे पर अपने और जेटली के दोहरे निकम्मेपन को लाद दिया है... 
Randhir Singh Suman  
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764 

अब लौट आओ न माँ 
सत्या शर्मा कीर्ति 
इस धरा - गगन के प्राण वायु
हो रहे क्षण- क्षण  कलुषित माँ
भर दो इसे स्नेह अमृत से
मुझमें ही बन ममता रू
लौट आओ न शिवानी माँ... 
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संस्मरण 

तीन घंटे तीन घटनाएं (संस्मरण)  
वैसे तो मै ऐसी बातों को मानती नहीं हूं, 
लेकिन हाल ही में मेरे साथ 
कुछ अजीब सी घटनाएं हुई,.. 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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जिनके भाग्य में नखलिस्तान नहीं 

इस बार दयानंद पांडेय के लेखन पर बात करने का मन हो रहा है। संयोगवश मैं ने उन के दो उपन्यास पढे- 'हारमोनियम के हज़ार टुकडे' और 'वे जो हारे हुए' । ज़िंदगी की सच्चाई को छूने वाला, एक कालखंड का यह इतिहास बहुत ताकत के साथ कलात्मक लेखन का दंभ भरने वालों को अंगूठा दिखाता है। आलोचकों और समीक्षकों को मुंह चिढाता यह लेखन साबित करता है कि अपने समय के समाज के साथ खडा होना ज़्यादा ज़रुरी है बनिस्पत 'साहित्य-साहित्य' की जुगाली करने के। शायद इसी लिए दयानंद पांडेय के पास केवल आज की भयावह दुनिया ही नहीं है बल्कि उस भयावहता को तोडने और काटने के लिए सोच की पैनी कलम भी है... 
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey  
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"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड ?" 

"गॉड पार्टिकिल डिस्कवर्ड" हेड लाइंस सुर्ख़ियों में पहली मर्तबा २०१२ में आईं। यद्यपि भौतिकी के माहिरों ने इस हेडलाइन को सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाली कहा... 
Virendra Kumar Sharma 

6 टिप्‍पणियां:

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